Wednesday, April 27, 2011

कुदरत के सामने बौना इंसान

(जापान की भूकंप त्रासदी पर विशेष)

संस्कृतियों के विकास से लेकर अब तक इंसानी जात लगातार कुदरत को अपने तरीके से संचालित करने की कोशिशें करती आई है। समय-समय पर कुदरत के तमाम रहस्यों से पर्दा उठाने के दावे भी किए जाते रहे हैं। मगर इतिहास गवाह है कि बीती शताब्दियों में ऐसे अनगिनत मौके आए हैं जब न केवल इंसान की तकनीकी तरक्की खोखली साबित हुई है, बल्कि अनेक संस्कृतियां समूल नष्ट होकर अतीत का हिस्सा बनने पर मजबूर हुई हैं। इंसान सदियों से ख़ुद को पृथ्वी का सबसे बुद्धिमान जीव कहता रहा है और दूसरे जीवों पर शासन करता आया है, मगर कुदरती विभीषिकाओं के आगम के समय इंसान के अलावा बाकी सभी जीव खतरे को पहले से भांपकर सुरक्षित स्थानों में चले जाते रहे हैं, वहीं कथित बुद्धिमान जीव इंसान कभी इस खतरे की आहट भी नहीं सुन पाया। कुदरत के द्वारा तमाम बार सचेत किए जाने के बावजूद इंसान कभी कुदरती नियम-कायदों से छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आया और फलस्वरूप पृथ्वी को बार-बार तबाही के मंजर से दो-चार होना पड़ रहा है।
वह सुबह जो रोशनी नहीं, मौत लाई
तकनीक के मामले में दुनिया का तीसरा सबसे विकसित देश जापान शुक्रवार 11 मार्च को एक भीषण त्रासदी का गवाह बना। सुबह पौने तीन बजे, जब शायद सभी लोग नींद के आगोश में थे, एक ऐसा जलजला आया जिसने हजारों लोगों को नींद से जागने का मौका भी नहीं दिया। विश्व में अब तक का यह पांचवा सबसे बड़ा भूकंप था। शक्तिशाली भूकंप और उसके बाद आई प्रलयंकारी सुनामी ने तमामों को मौत की नींद सुला दिया। रिक्टर पैमाने पर 8.9 तीव्रता के भूकंप का केंद्र देश के उत्तरपूर्वी तट से 125 किलोमीटर दूर समुद्र में 10 किलोमीटर की गहराई में स्थित था। देश में पिछले 140 साल में आया यह सबसे भीषण भूकंप था। इसके असर से समुद्र में 33 फीट से भी ज्यादा ऊंची लहरें उठीं जिससे लगभग लाखों घर बर्बाद हो गए और सैकड़ों होटल जमींदोज़ हो गए।
दबे पांव आई मौत ने हर तरफ तबाही मचाई। तटीय इलाके में यात्रियों से भरी ट्रेनें लापता हो गईं, तेल रिफाइनरियों और स्टील प्लांटों में आग लग गई। घर, हवाई जहाज, बसें, कारें, बगीचे पानी के तेज बहाव में बहने लगे। परमाणु रिएक्टरों को आनन-फानन बंद करने की कोशिशें होने लगीं। बिजली आपूर्ति न होने से सब कुछ अस्त व्यस्त हो गया था। हर तरफ तबाही का मंजर दिखाई दे रहा था। जापान की सरकार ने लोगों को सुरक्षित स्थानों में जाने के लिए एलर्ट जारी कर दिया, मगर पूरे देश में कौन सा स्थान सुरक्षित है, यह शायद सरकार को भी नहीं पता था। भूकंप और सुनामी ने कुछ भी सलामत नहीं छोड़ा था। चारों ओर चीख-पुकार मची हुई थी। तबाही के बाद भी बच निकलने वाले खुशकिस्मत लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे। मगर कुदरत का कहर यहीं नहीं थमा, लगभग आधे घंटे बाद 7.4 तीव्रता का एक और भूकंप आया, जिससे वह सब भी तहस-नहस हो गया जो पिछले भूकंप में बच गया था। जब राहत और बचाव कार्य शुरू हुए तो एक और डरावना सच सामने आया, भूकंप और सुनामी के कारण कई परमाणु रिएक्टर के क्षतिग्रस्त और बेकाबू हो गए थे। फुकुशिमा का एक परमाणु रिएक्टर लगभग पूरी तरह अनियंत्रित हो गया। बिजली की आपूर्ति न हो पाने के कारण रिएक्टरों का कूलिंग सिस्टम पूरी तरह ध्वस्त हो गया था और वहां आग धधक उठी, नतीजतन रिएक्टरों का वह हिस्सा पिघलना शुरू हो गया जहां परमाणु ईंधन होता है। हालांकि, रिएक्टरों में लगी आग को बुझाने के लिए वैकल्पिक इंतजाम किए गए, समुद्र के पानी को वहां तक पहुंचाया गया, हेलीकॉप्टरों से पानी बरसाया गया, मगर ये कोशिशें नाकाफी थीं। रिएक्टरों में एक के बाद एक धमाके होने लगे और इसके बाद तबाही की रफ्तार तेज हो गई। रेडिएशन फैलने के कारण मौत का तांडव और भयावह हो गया। मरने वालों की संख्या 10 हजार के पार पहुंच गई और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी। रेडिएशन से अकेले मियागी शहर में ही लगभग ढाई हजार लोग एक साथ काल के गाल में समा गए। डेढ़-दो हफ्ते में रिएक्टरों की आग में किसी तरह से काबू पाया जा सका, मगर तब तक इनसे निकले रेडियोऐक्टिव धुएं ने वातावरण में ऐसा जहर घोल दिया था जिसका असर जापान ही नहीं, बल्कि आस-पास के देशों में भी देखने को मिल रहा है। जापान के अस्पतालों में रेडिएशन के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए लोगों की भारी तादाद मौजूद है और प्रभावितों का आना अभी भी जारी है। भूकंप और सुनामी के कारण पूरे जापान में लगभग 20 हजार लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग इतने ही लापता भी हैं, तकरीबन 65 लाख घर तबाह हो चुके हैं। तबाही की भयानकता का अंदाजा लगाने के लिए शायद इतने आंकड़े काफी हैं।
पहले मौत का तांडव, फिर हालात बद से बदतर
जापान सरकार ने भूकंप और सुनामी की तबाही से बच गए लोगों से सुरक्षित स्थानों में चले जाने का आग्रह किया है, मगर लोगों को सुरक्षित स्थानों का पता-ठिकाना ढूंढ़ने में खासी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। रेडिएशन के खतरे के डर से लगभग समूचा जापान और आस-पास के कई देश खासे सहमे हुए हैं। सरकार ने भी यह घोषित कर दिया है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान पर आया यह सबसे बड़ा संकट है। जापानी समाचार एजेंसी क्योदो के अनुसार आपदा के कारण लाखों लोगों को अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है और हजारों लोग अभी भी लापता हैं। लाखों लोगों के पास खाने-पीने और छत का संकट है। हालांकि जापान सरकार ने कई जरूरी कदम उठाए हैं, मगर हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि इनके नियंत्रण में शायद महीनों और सालों का वक्त लगेगा।
रेडिएशन ने रोक दी है जिंदगी की रफ्तार
दुनिया के विकसित देशों में से एक जापान भूकंप और सुनामी के लिए तो हरदम तैयार रहता है, मगर एटमी खतरे के लिए शायद तैयार नहीं था। पहले भूकंप और सुनामी ने जमकर तबाही मचाई, जो कुछ बचा था उसे रेडिएशन का दंश झेलना पड़ रहा है। इधर से उधर भागते भूखे-प्यासे लोगों को सरकार की ओर से सावधान किया जा रहा है कि खाने-पीने की किसी भी चीज का सेवन जांच के बिना न करें, वह चीज रेडिएशन का शिकार हो सकती है। और तो और लोगों को रेडिएशन की जांच के लिए भी जगह-जगह पर रुकना पड़ रहा है। ऐसे में पहले से परेशान जनता को और भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा किया जाना भी जरूरी है, वर्ना तबाही का मंजर और भी भयावह हो सकता है। भूकंप की आपदा से बच निकलने की कोशिश में जुटे लोगों पर रेडियशन कहर और खौफ बन कर टूट रहा है। आपदा के कारण जापान के लोगों का दैनिक जीवन पटरी से उतर गया है। कुछ भी पहले जैसा नहीं रह गया।
शव दफनाने को कम पड़ गए ताबूत
भूकंप और सुनामी की विभीषिका का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां मारे गए लोगों के लिए ताबूतों की कमी पड़ गई। राहत कार्य में लगे एक अधिकारी के अनुसार देश भर में शव दफनाने वाली संस्थाओं से ताबूत मांगे गए हैं लेकिन, ताबूत बेहद कम मिल पा रहे हैं। मृतकों की संख्या इतनी ज्यादा होने के कारण उन्हें दफनाना एक बड़ी चुनौती है। अधिकारी ने बताया कि एक दिन में औसतन 20 शव ही दफनाए जा पा रहे हैं, जबकि मृतकों की संख्या इससे कई गुना ज्यादा है। प्रकृति के कहर से खुद को बचा पाने में सफल रहे जीवित बचे लोगों को खाने की चीजें और पीने के पानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। हताहत लोगों की संख्या इतनी ज्यादा है कि सभी तक सरकारी मदद पहुंचा पाना मुश्किल हो रहा है। राहत और बचाव कार्य में जुटी टीमों की मांग भी पूरी नहीं हो पा रही। केवल 10 प्रतिशत सामान की आपूर्ति हो पा रही है।
हर तरफ है दर्द का मंजर
भूकंप और सुनामी के बाद हर एक जापानी सहमा हुआ है। तमामों ने अपने सगे-संबंधियों को खो दिया और बहुतों खुद ही असमय मौत का शिकार हो गए। दर्द का आलम यह है कि कई परिवारों में तो शवों पर विलाप करने वाला भी कोई नहीं बचा। ऐसे हृदय विदारक दृश्य देखकर राहत और बचाव कार्य में जुटे विदेशी लोग भी खुद को रोने से नहीं रोक पा रहे। जापान के ऊपर आए इस महासंकट में लगभग हर सक्षम देश मदद के लिए आगे आ रहा है, मगर रेडिएशन के डर के कारण इस काम में खासी दिक्कत पेश आ रही है।
साइकिल पर सवार होकर घर पहुंचने की कोशिश
टोक्यो और उसके उपनगरों में साइकिलों की बिक्री बढ़ गई है। भूकंप के कारण रेल, सड़क और हवाई यातायात पूरी तरह ठप हो जाने के कारण जनजीवन थम गया है। ऐसे में लोग अपने घरों तक पहुंचने के लिए साइकिलों का सहारा ले रहे हैं। खाने-पीने की चीजों की किल्लत के बावजूद लोग साइकिल से ही लंबी दूरी तय करके अपने घर और अपने परिवार तक पहुंचने की कोशिशें कर रहे हैं। इस काम में कई स्वयं सेवी संगठन भी उनकी मदद के लिए आगे आए हैं।
रेडिएशन का शिकार हो रहा समुद्र का पानी
फुकुशिमा के परमाणु संयंत्र के पास समुद्र के पानी में रेडियोऐक्टिव पदार्थों की मात्रा सामान्य से लगभग डेढ़ हजार गुना बढ़ गई है। इससे संयंत्र के 20-30 किलोमीटर की परिधि में रहने वाले लोगों पर रेडिएशन का खतरा पैदा हो गया है। समुद्र की दिशा से आ रही हवाएं लोगों को बीमार बना रही हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने इस परिधि में रहने वाले लोगों से क्षेत्र को खाली करने को कहा है। प्रदूषित पानी से बचाव के उपाय तलाशे जा रहे हैं।
भूकंप प्रभावितों से घर न लौटने की अपील
भीषण भूकंप और सुनामी से फुकुशिमा प्रांत में बेघर हुए लोग घर लौटना चाहते हैं, मगर परमाणु संकट का हवाला देकर सरकार ने उन्हें ऐसा न करने को कहा है। सरकार का कहना है कि घर लौटने पर उनके स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। इस बीच तमाम लोग अपने-अपने घर वापस आने की कोशिशें कर रहे हैं और अपने उजड़े आशियानों को फिर से रहने लायक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। सरकार ने प्रभावित लोगों से अपील की है कि बिना अनुमति के वे अपने घरों को न लौटें।
धुरी से चार इंच खिसक गई धरती
भूकंप और उसके बाद की सुनामी इतनी भयानक थी कि पृथ्वी अपनी धुरी से खिसक गई और पृथ्वी की अपनी धुरी पर चक्कर लगाने की गति भी बढ़ गई। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे पृथ्वी का दिन थोड़ा सा छोटा हो गया है। अमेरिकन जियोलॉजिकल सर्वे में भूभौतिकी वैज्ञानिक केननथ हडनट के अनुसार जापान के जियोस्पेटिकल इंफॉर्मेशन अथॉरिटी का मानचित्र देखने पर पता चलता है कि इस बड़े भूकंप ने पृथ्वी को अपनी धुरी से लगभग चार इंच खिसक गई है। नासा के भूभौतिकी वैज्ञानिक रिचर्ड ग्रास के अनुसार भूकंप के बाद से पृथ्वी की अपनी धुरी पर चक्कर लगाने की गति 1.6 माइक्रो सेकेंड बढ़ गई है, जिससे दिन पहले की अपेक्षा थोड़ा सा छोटा हो गया है। भूकंप इतना तेज था कि इससे जापान का एक द्वीप अपनी जगह से हिल गया है।
भूकंप से निपटने में सबसे ज्यादा सक्षम है जापान
मौत का नंगा नाच देखने के लिए मजबूर होने वाला देश जापान तकनीक के मामले लगभग पूरी दुनिया पर राज करता है और घोषित रूप से भूकंप से निपटने में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा सक्षम देश है। जापान में भूकंप का आना कोई नई बात नहीं है। भूकंप के लिहाज से जापान पूरे विश्व में सबसे ज्यादा संवेदनशील देश है और इसीलिए इस देश ने इस आफत से निपटने की अत्याधुनिक तकनीकें विकसित की हैं। जापान में बच्चे-बच्चे को अचानक आने वाले भूकंप और सुनामी से निपटने का प्रशिक्षण दिया जाता है। जैसे ही स्कूल में खतरे की घंटी बजती है, बच्चे मलबे में दबने से बचने के लिए अपनी डेस्क(मेज) के नीचे छिप जाते हैं और भूकंप के रहने तक मेज के पायों के बीच खुद को जकड़े रहते हैं। जापान में बनने वाली छोटी से छोटी इमारत को भूकंपरोधी बनाया जाता है। इन इमारतों की नींव जमीन के नीचे बहुत ही गहरी होती है। इसके अलावा इनमें लोहे की सरियों का इस्तेमाल सामान्य से अधिक होता है। जापान में हर घर और ऑफिस में भूपंक के लिए इमरजेंसी किट रहती है, जिसमें खाने की सूखी चीजें, पीने का पानी और दवाएं रहती हैं। स्कूल में बच्चों को भूकंप से बचने के लिए हर महीने अभ्यास कराया जाता है। स्थानीय अग्निशमन विभाग भी भूकंप आने पर आग लगने की स्थिति से निपटने के लिए बच्चों को बाकायदा ट्रेनिंग देते रहते हैं। जापान में जैसे ही भूकंप आते हैं, सारी सरकारी संस्थाएं सक्रिय हो जाती हैं। रेडियो और टेलीविजन समेत सारे माध्यम अन्य प्रसारण बंद कर देते हैं। इस दौरान सिर्फ भूकंप और सुनामी से निपटने के उपाय बताए जाते हैं।
तकनीक ही बन गई विनाश का सबब
जापान में ज्यादातर बिजली की आपूर्ति परमाणु बिजलीघरों में पैदा होने वाली बिजली से होती है, यहां परमाणु बिजलीघरों की संख्या भी अन्य देशों की तुलना में ज्यादा है। मगर इस पलयंकारी भूकंप और सुनामी के बाद से बिजली आपूर्ति पूरी तरह ठप हो गई। यहां तक कि खुद परमाणु रिएक्टरों को भी बिजली नहीं मिल पाई, नतीजतन कुछ परमाणु रिएक्टरों के कूलिंग सिस्टम फेल हो गए और तापमान बढ़ने के कारण उनमें विस्फोट होने लगे। विस्फोट के बाद फैलने वाले रेडिएशन ने सबको मौत बांटी। वे परमाणु रिएक्टर जिन पर जापान नाज़ करता था और बाकी देश ईर्ष्या करते थे, वही रिएक्टर अब जापान को उजाड़ने में लगे हुए थे। जिन रिएक्टरों को सुरक्षित बचा लिया गया वहां पर बिजली उत्पादन का कार्य तुरंत बंद करने के आदेश जारी किए गए और वे अभी तक बंद ही हैं। जापान सहित 20 पड़ोसी देशों में परमाणु एलर्ट जारी कर दिया गया है। रेडिएशन से हुई तबाही को देखकर तमाम सालों से व्यक्त की जा रही यह आशंका एकदम सच लगने लगी है कि इंसान का अनियंत्रित वैज्ञानिक विकास ही एक दिन धरती के विनाश का कारण बनेगा।
परमाणु रिएक्टरों को मिली थी चेतावनी
जापान को दो साल पहले अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने परमाणु संयंत्रों को लेकर चेतावनी दी थी। एजेंसी ने कहा था कि जापान में परमाणु संयंत्रों का रख-रखाव ऐसा नहीं है कि भीषण भूकंप की मार झेल सके। लंदन के अखबार द संडे टेलीग्राफ के अनुसार दिसंबर 2008 में आईएईए के अधिकारियों ने जापान के परमाणु संयंत्रों का निरीक्षण किया था। एजेंसी ने कहा था कि जापान में भूकंप के बचाव के उपायों को पिछले 35 सालों में सिर्फ तीन बार जांचा गया है। उस दौरान जापान का ध्यान इस ओर दिलाया गया था कि बीते कुछ समय में आए भूकंप परमाणु संयंत्रों की सह सकने की क्षमता से ज्यादा तीव्रता वाले रहे हैं। उस समय जापान ने यह वादा किया था वह अपने सभी परमाणु संयंत्रों में सुरक्षा उपाय और मजबूत करेगा और फुकुशिमा संयंत्र में इमरजेंसी रिस्पॉन्स सेंटर बनाएगा। फुकुशिमा संयंत्र में रिक्टर पैमाने पर 7 तीव्रता तक का भूकंप झेलने की क्षमता है मगर यह भूकंप 8.9 तीव्रता वाला था। एक बात और गौर करने वाली है कि 2006 में जापान सरकार ने अपनी एक अदालत के उस आदेश को मानने से इनकार कर दिया था जिसमें देश के पश्चिम में स्थित एक परमाणु संयंत्र को बंद करने को कहा गया था। अदालत का कहना था कि यह संयंत्र केवल 6.5 तीव्रता तक का भूकंप सह सकता है, ऐसे में लोगों के रेडिएशन से प्रभावित होने का खतरा बहुत अधिक है। जापानी परमाणु और औद्योगिक सुरक्षा एजेंसी का दावा इसके उलट था, इसलिए जांच के बाद जापान सरकार ने इस फैसले को पलट दिया था।
स्वास्थ्य पर रेडिएशन के खतरे
रेडिएशन का स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव होता है। रेडिएशन से संक्रमित होने के शुरुआती संकेत ये हैं कि इसमें नाक बहती है, उल्टी-दस्त लग जाते हैं, व्यक्ति के शरीर में पानी कम हो जाता है, संक्रमण के कुछ ही मिनटों में ऐसा होने लगता है। व्यक्ति इन लक्षणों से तत्काल उबर भी सकता है और स्वस्थ दिखने लगता है, मगर बाद के महीनों में ये संकेत उभरने रहते हैं और धीरे-धीरे व्यक्ति की भूख खत्म हो जाती है, वह थका रहने लगता है। आगे चलकर बुखार, जुकाम, उल्टी, डायरिया से ग्रस्त रहने लगता है। अंततः स्वास्थ्य प्रतिरक्षा तंत्र नष्ट हो जाने से उसकी मौत तक हो सकती है। रेडिएशन के प्रभाव से व्यक्ति की त्वचा खराब हो जाती है।
अमेरिकन थायरॉयड एसोसिएशन के अनुसार रेडिएशन का सबसे ज्यादा प्रभाव थायरॉयड ग्लैंड्स पर पड़ता है। ये रेडियोऐक्टिव पदार्थों के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील होते हैं। अतः रेडिएशन से थायरॉयड कैंसर का खतरा पैदा हो जाता है। बच्चे और युवा इसके सबसे आसान शिकार होते हैं। 40 के पार के लोगों में यह खतरा कम होता है। रेडिएशन के दौरान रेडियोऐक्टिव आयोडीन हवा में फैल जाता है, जो कि बेहद खतरनाक होता है। इसका मुकाबला करने के लिए पोटैशियम आयोडीन की गोलियां दी जाती हैं। पोटैशियम आयोडीन थायरॉयड ग्लैंड्स को रेडियोऐक्टिव आयोडीन ग्रहण करने से रोकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार 98 प्रतिशत मामलों में लोग अप्रत्यक्ष रूप से रेडिएशन का शिकार होते हैं, यानी रेडिएशन से संक्रमित खाद्य पदार्थों के सेवन से रेडिएशन ज्यादा फैलता है। दुग्ध पदार्थों में रेडिएशन का असर सबसे ज्यादा होता है। दूध देने वाले जानवर जब रेडिएशन से संक्रमित घास या अन्य पदार्थ खाते हैं तो उनका दूध संक्रमित हो जाता है और इसका प्रयोग करने वाला व्यक्ति भी रेडिएशन का शिकार हो जाता है।
जापान में क्यों आते इतने ज्यादा भूकंप
भूकंप जापान के लिए कोई नई और अनोखी घटना नहीं है। भूकंप के लिहाज से जापान दुनिया का सबसे ज्यादा संवेदनशील देश है। अकेले जापान में पूरे विश्व के ऐसे 20 प्रतिशत भूकंप आते हैं जिनकी तीव्रता छह या इससे अधिक होती है। जापान में सर्वाधिक भूकंप आने का कारण यह है कि पृथ्वी के महाद्वीपों और महासागरों का निर्माण जिन ठोस परतों से हुआ है, वे जापान के स्थल क्षेत्र के नीचे जुड़ती हैं। जब-जब इन परतों में हलचल होती है, तब-तब जापान की धरती हिलती है। परतों का संधि स्थल होने के कारण इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में ज्वालामुखी हैं। जापान में इसीलिए गर्म जल के स्रोत भी सर्वाधिक हैं। प्रशांत माहासागर के इस क्षेत्र को सक्रिय भूकंपीय गतिविधियों के कारण ‘पैसिफिक रिंग ऑफ फायर’ कहा जाता है। अपने ज्ञात इतिहास में जापान ने भूकंप के बाद रिकॉर्ड दो सौ से ज्यादा बार सुनामी का सामना किया है।
जापान में आई यह भीषण आपदा यूं तो बेहद विनाशकारी है, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब कुदरत ने धरती पर अपना कहर ढाया हो। सबसे चौंकाने वाली और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि हम इंसान इन विभीषिकाओं के असर से बाहर निकलने का प्रयास तो करते हैं और एक समय के बाद बाहर भी निकल जाते मगर इन आपदाओं के कारणों को जानने और मानने का प्रयास गंभीरता से नहीं करते। कुदरत द्वारा बार-बार चेताए जाने के बावजूद वैज्ञानिक तरक्की की आड़ में हम कुदरत के हर कार्य में दखलंदाजी करते जा रहे हैं। हो सकता है कि हममें से तमाम लोगों ने ऐसी किसी प्राकृतिक आपदा में अपने किसी सगे-संबंधी को न खोया हो, मगर यदि हम ऐसी आपदा झेलने वाले लोगों से मिलें तो शायद उस दर्द को समझ पाएंगे और हम इंसानों को अपनी गलतियों का एहसास भी जरूर हो जाएगा। हमने अपने आस-पास के वातावरण को काफी हद तक खराब कर लिया है और इस काम में अथक रूप से लगे हुए हैं, लेकिन अगर हमने अपनी हरकतों को अभी भी न सुधारा तो शायद आने वाले कल में ऐसा करने का न तो वक्त बचेगा और न ही वजह।

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