सोचना, हमारे दोस्त अक्लमंद का पुश्तैनी पेशा है। इनके बाप-दादा और उनके पहले की कई पीढ़ियां भी चिरकाल से सोचने की दुकान चलाते आए हैं। इनकी पिछली पीढ़ियों के लोग गांधी, नेहरू, पटेल, लोहिया आदि को सोच डिलीवर करते थे। तब से लेकर अब तक इनकी सोच पीढ़ी-दर-पीढ़ी तमाम चरणों से गुजरते हुए बेहद परिष्कृत हो चुकी है।
पिछले हफ्ते ही अक्लमंद ने अपनी सोच की दुकान को फिर से डेंट-पेंट करवाया है। दुकान के बाहर एक बोर्ड भी लगाया गया है, जिस पर लिखा है, ‘नई सोच की सबसे पुरानी दुकान’। अक्लमंद साहब ने दुकान में ही एक शोकेस भी बनवाया है, जिसमें सोच के क्षेत्र में उनके दादा-परदादा के द्वारा हासिल किए हुए मेडल और सनदों को ससम्मान रखा गया है।
सोच की इस प्रतिष्ठित दुकान में बिकने वाली सोच की रिप्लेसमेंट की फुल गारंटी रहती है। दुकान में विभिन्न रेटों की सोचें उपलब्ध हैं। मौजूदा रेट लिस्ट के अनुसार मंहगाई से निजात पाने के उपाय सुझाने वाली सोच सबसे मंहगी है और पारिवारिक समस्याओं को सॉल्व करने की अचूक सोच सबसे कम दाम पर मिल रही है। त्योहारों के सीजन में यहां विशेष ऑफर भी रहता है, जिसमें लकी ड्रॉ में जीतने वाले भाग्यशाली ग्राहकों को सोच मुफ्त में दी जाती है।
इस दुकान की सोच की गुणवत्ता किसी परिचय की मोहताज नहीं है। देश के कोने-कोने से आने वाले लोग इनकी कारगर सोच की एवज में मुंह मांगे दाम चुकाकर जाते हैं। अक्लमंद का दावा है कि बाबा आरामदेव इनके नियमित ग्राहक हैं। बाबा ने अब तक जो भी प्रसिद्धि हासिल की है, उन सभी में इनकी दुकान से खरीदी हुई पब्लिक-प्रसन्नीकरण सोच का अहम रोल है। अक्लमंद तो यहां तक कहते हैं कि तमाम लेखकों और राजनेताओं ने रातों-रात सुर्खियों में आने के लिए इसी दुकान की डेहरी पर मत्था टेका है।
हालांकि अक्लमंद की कामयाबी से जलने वाले लोग हरदम कहते रहते हैं कि अक्लमंद देश की जनता को मानसिक रूप से पंगु बना रहा है और बिना कोई काम किए अच्छी रकम ऐंठ रहा है। मगर इन बेबुनियाद दावों से अक्लमंद की लोकप्रियता पर कोई फर्क नहीं पड़ता। अक्लमंद का कहना है हमारी सोच के लाखों ग्राहक ही हमारी कामयाबी के सबसे बड़े सबूत हैं।
अक्लमंद के अलावा भी कुछ लोगों ने सोच की दुकानें खोलीं मगर वो लोग इस धंधे से दुकान की लागत भी नहीं निकाल पाए। वो लोग वह विश्वास नहीं जीत पाए जो अक्लमंद ब्रदर्स को प्राप्त है। अक्लमंद बंधुओं ने लगातार 25वीं बार ‘ऑल टाइम हिट थिंकिंग’ का अवार्ड जीतकर इतिहास रचा है। अक्लमंद साहब अब अपने कारोबार को ग्लोबल स्तर पर फैलाने का प्लान कर रहे हैं। अंदर के लोगों से पता चला है कि अगले साल ही इस दुकान की शाखाएं न्यूयॉर्क और लंदन में भी खुल जाएंगी। इसके लिए वहां जमीन का जुगाड़ भी कर लिया गया है। अब वह दिन दूर नहीं जब दुनिया के सभी देश उम्दा सोच के लिए आदरणीय अक्लमंद के सामने हाथ फैलाए खड़े नजर आएंगे।
फिलहाल उनकी दुकान में ऑफर आया है, ‘एक के साथ एक सोच मुफ्त’। तो आइए चलते हैं, ऑफर का लाभ उठाने।
काजु बहुत बढ़िया लिखा है। जनसत्ता में जो लेख आया था उस पर तुम्हारे कमेंट का इंतजार है।
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