Wednesday, March 16, 2011

´सोच´ की दुकान

सोचना, हमारे दोस्त अक्लमंद का पुश्तैनी पेशा है। इनके बाप-दादा और उनके पहले की कई पीढ़ियां भी चिरकाल से सोचने की दुकान चलाते आए हैं। इनकी पिछली पीढ़ियों के लोग गांधी, नेहरू, पटेल, लोहिया आदि को सोच डिलीवर करते थे। तब से लेकर अब तक इनकी सोच पीढ़ी-दर-पीढ़ी तमाम चरणों से गुजरते हुए बेहद परिष्कृत हो चुकी है।
पिछले हफ्ते ही अक्लमंद ने अपनी सोच की दुकान को फिर से डेंट-पेंट करवाया है। दुकान के बाहर एक बोर्ड भी लगाया गया है, जिस पर लिखा है, ‘नई सोच की सबसे पुरानी दुकान’। अक्लमंद साहब ने दुकान में ही एक शोकेस भी बनवाया है, जिसमें सोच के क्षेत्र में उनके दादा-परदादा के द्वारा हासिल किए हुए मेडल और सनदों को ससम्मान रखा गया है।
सोच की इस प्रतिष्ठित दुकान में बिकने वाली सोच की रिप्लेसमेंट की फुल गारंटी रहती है। दुकान में विभिन्न रेटों की सोचें उपलब्ध हैं। मौजूदा रेट लिस्ट के अनुसार मंहगाई से निजात पाने के उपाय सुझाने वाली सोच सबसे मंहगी है और पारिवारिक समस्याओं को सॉल्व करने की अचूक सोच सबसे कम दाम पर मिल रही है। त्योहारों के सीजन में यहां विशेष ऑफर भी रहता है, जिसमें लकी ड्रॉ में जीतने वाले भाग्यशाली ग्राहकों को सोच मुफ्त में दी जाती है।
इस दुकान की सोच की गुणवत्ता किसी परिचय की मोहताज नहीं है। देश के कोने-कोने से आने वाले लोग इनकी कारगर सोच की एवज में मुंह मांगे दाम चुकाकर जाते हैं। अक्लमंद का दावा है कि बाबा आरामदेव इनके नियमित ग्राहक हैं। बाबा ने अब तक जो भी प्रसिद्धि हासिल की है, उन सभी में इनकी दुकान से खरीदी हुई पब्लिक-प्रसन्नीकरण सोच का अहम रोल है। अक्लमंद तो यहां तक कहते हैं कि तमाम लेखकों और राजनेताओं ने रातों-रात सुर्खियों में आने के लिए इसी दुकान की डेहरी पर मत्था टेका है।
हालांकि अक्लमंद की कामयाबी से जलने वाले लोग हरदम कहते रहते हैं कि अक्लमंद देश की जनता को मानसिक रूप से पंगु बना रहा है और बिना कोई काम किए अच्छी रकम ऐंठ रहा है। मगर इन बेबुनियाद दावों से अक्लमंद की लोकप्रियता पर कोई फर्क नहीं पड़ता। अक्लमंद का कहना है हमारी सोच के लाखों ग्राहक ही हमारी कामयाबी के सबसे बड़े सबूत हैं।
अक्लमंद के अलावा भी कुछ लोगों ने सोच की दुकानें खोलीं मगर वो लोग इस धंधे से दुकान की लागत भी नहीं निकाल पाए। वो लोग वह विश्वास नहीं जीत पाए जो अक्लमंद ब्रदर्स को प्राप्त है। अक्लमंद बंधुओं ने लगातार 25वीं बार ‘ऑल टाइम हिट थिंकिंग’ का अवार्ड जीतकर इतिहास रचा है। अक्लमंद साहब अब अपने कारोबार को ग्लोबल स्तर पर फैलाने का प्लान कर रहे हैं। अंदर के लोगों से पता चला है कि अगले साल ही इस दुकान की शाखाएं न्यूयॉर्क और लंदन में भी खुल जाएंगी। इसके लिए वहां जमीन का जुगाड़ भी कर लिया गया है। अब वह दिन दूर नहीं जब दुनिया के सभी देश उम्दा सोच के लिए आदरणीय अक्लमंद के सामने हाथ फैलाए खड़े नजर आएंगे।
फिलहाल उनकी दुकान में ऑफर आया है, ‘एक के साथ एक सोच मुफ्त’। तो आइए चलते हैं, ऑफर का लाभ उठाने।

कलमाड़ी, तुसी ग्रेट हो...

कॉमनवेल्थ घोटाला स्पर्धा में मिस्टर कलमाड़ी सबसे बड़े खिलाड़ी बनकर उभरे। उन्होंने सोने-चांदी, हीरे-मोती, नकदी आदि के तमाम ज्ञात-अज्ञात तमगे बटोरकर नए कीर्तिमान स्थापित किए और सबको अचंभित कर दिया। मिस्टर कलमाड़ी ने ऐसी अकल मारी कि बाकियों ने ‘हारे को हरिनाम’ से संतोष कर लेने में ही अपनी भलाई समझी।
नंबर वन खिलाड़ी मिस्टर कलमाड़ी अपने खेल में इस तरह तल्लीन हुए कि समापन समारोह में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम को अबुल कलाम आजाद कह मारा। और तो और, वहां मौजूद तमाम गणमान्य व्यक्तियों ने उनकी इस नादानी को हंसकर किनारे कर दिया। पूछने पर गणमान्यों ने बताया कि मिस्टर खिलाड़ी अपने खेल में इस कदर रमे हुए हैं कि अन्य चीजों के प्रति वह समदृष्टा हो गए हैं। देश रूपी मछली की प्रतिष्ठा रूपी आंख पर निशाना साधते समय आस-पास की फालतू वस्तुएं उनका ध्यान भंग नहीं कर पाईं और वह लक्ष्य भेदने में सफल रहे। खेलों में मुकाबलों के दौरान जब दूसरे खिलाड़ी एड़ी-चोटी का जोर लगाकर नंबर वन बनने के लिए पसीना बहा रहे थे, उस समय खिलाड़ी द ग्रेट, वन मैन ऑर्मी मिस्टर कलमाड़ी ने अकेले दम पर मोर्चा संभाले रखा। जहां बाकी खिलाड़ी कुछेक पदकों पर ही हाथ साफ कर पाए, वहीं इस खिलाड़ी ने खेल प्रशंसकों की उम्मीदों से कहीं आगे का प्रदर्शन करते हुए अपनी झोली फुल की।
खिलाड़ी श्रेष्ठ ने विशेष कौशल का एक और प्रदर्शन किया। उन्होंने खेल की तैयारियों के लिए हो रही खुदाई को पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की खुदाई के रूप प्रचारित करवाया, जिससे बाकी प्रतियोगियों को सचेत होने का मौका भी न मिले। वैसे खेल विश्लेषकों का कहना है कि मान्यवर खिलाड़ी ने मेन टूर्नामेंट में अपने उम्दा प्रदर्शन को सुनिश्चित करने के लिए तमाम क्षेत्रीय और राष्ट्रीय टूर्नामेंटों में जमकर नेट प्रैक्टिस की है। ये अलग बात है कि उस दौरान उनकी खेल प्रतिभा को किसी पारखी नजर ने नहीं देखा। मगर, कहते हैं ना कि ‘सब दिन जात न एक समान’। अब वह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। सब तरफ उनके टायलेंट के चर्चे हो रहे हैं। उन पर आधारित फिल्मी गीत ‘कलमाड़ी का खेलना, खेल का सत्या.....’ लोगों की जुबान पर है। उनकी विनम्रता, सुशीलता, सरलता और महानता भी देखते ही बनती है। कभी कहीं पर भी वह सम्मान प्राप्त करने खुद नहीं जाते। उन्हें पता है कि सम्मान देने वाला ये कहते हुए खुद-ब-खुद उनके घर चला आएगा कि ‘कलमाड़ी साहब, तुसी ग्रेट हो, तोहफा कुबूल करो’।
इंटरनेट सर्च इंजन टूगल ने ये दावा किया है कि पिछले हफ्ते नेट यूजर्स ने जिस शीर्षक को सबसे ज्यादा सर्च किया, वह था ‘कलमाड़ी के कारनामे’। इससे साफ जाहिर है कि कलमाड़ी साहब अब महज हमारे देश की सेलिब्रिटी ही नहीं हैं, दुनिया के बाकी हिस्सों में भी उनके मुरीदों की अच्छी खासी तादाद है। अंतरराष्ट्रीय घोटाला महासंघ ने इस खिलाड़ी को ‘परफॉर्मर ऑफ द इयर’ का पुरस्कार देने की घोषणा की है। भई, हम तो यही कहेंगे कि,
‘यू आर वेरी ग्रेट, मिस्टर कलमाड़ी।
न भूतो न भविष्यति तुम सम खिलाड़ी।। ’