Monday, August 9, 2010
'शब्द की शक्ति' अथवा ' इसे भुलाना आसान नहीं'
बात तकरीबन सात महीने पहले की है। उन दिनों मैं भोपाल के एक हिंदी दैनिक में काम करता था। हर रोज़ की तरह ही एक दिन जब मैं अपने दफ्तर पहुंचा तो मुझे बताया गया कि एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति मुझसे मिलने के लिए तकरीबन तीन घंटे से प्रतीक्षा कर रहा है। उस व्यक्ति से मिलने के पहले मुझे इस बात का कतई अंदाजा नहीं था कि यह मुलाकात मुझे एक चौंकाने वाला अनुभव कराएगी और ताउम्र याद रहेगी।
एकदम साधारण वेशभूषा के उस व्यक्ति ने मुझसे मिलते ही मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर चूम लिया। मैं फटी आंखों से उसे देख रहा था। उसने कहा, “मैं आपके बगल में बैठने की हैसियत नहीं रखता। इसलिए खड़ा ही रहूंगा। मैंने जब से भोपाल गैस त्रासदी पर आपकी कविता पढ़ी है, तब से ही आपसे मिलने के लिए व्याकुल था।” मुझसे तिगुनी उम्र का व्यक्ति मुझे आप-आप कह रहा था इसलिए मैं बोल पड़ा कि कृपया मुझे ‘तुम’ ही कहें। वह मान गया और आगे कहना शुरू किया, “वैसे जिस अखबार में तुम्हारी कविता छपी थी, उसका मैं नियमित पाठक नहीं हूं मगर कविता पढ़ने के बाद से मैं इस उम्मीद से यह अखबार जरूर देख लेता हूं कि हो सकता है कि फिर कोई दिल की बात छपी हो। मेरा नाम जगतराम मारण है। गैस त्रासदी में मैंने अपने दो बेटे, पत्नी और एक आंख खो दी। मेरा बड़ा बेटा अगर आज जीवित होता तो शायद तुम्हारी ही उम्र का होता।”
मैंने हिम्मत करके बीच में टोका, “ जी, मेरी उम्र चौबीस साल है और गैस त्रासदी को हुए पच्चीस बरस बीत चुके हैं। मेरा मतलब, उस वक्त तक मैं पैदा नहीं हुआ था।” उस व्यक्ति ने आगे कहा, “बेटा, हो सकता है कि पिछले जन्म में तुम मेरे बेटे ही रहे हो। मैं बहुत कोशिश करके अपने बेटों और बीवी को भूलने लगा था मगर तुमने जिस तरह से गैस त्रासदी को जीवंत किया है उससे मेरी चोटिल रगें फिर से दुखने लगी हैं और यह दर्द अब शायद ही कभी खत्म होगा। बेटा, तुम मेरी बातों का बुरा मत मानना।” सूचना क्रांति के उफान के इस दौर के बावजूद उसने न तो मुझसे मेरा मोबाइल नंबर मांगा और न ही अपना नंबर मुझे दिया। मुझे इससे काफी हैरानी हुई मगर शायद उसके पास मोबाइल था भी नहीं। उसके पास मोबाइल होने की कोई वजह भी नहीं थी। अपनी बात कह कर वह व्यक्ति वहां से चला गया। उसे जाते हुए देख कर यूं लग रहा था कि जैसे वह मुझे कोई जरूरी चीज सौंपने आया था और इसके लिए वह बहुत दिनों से इंतजार भी कर रहा था।
उसके जाने के बाद मैं एकदम अधीर हो चुका था। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। बेशक, वह व्यक्ति मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण बन चुका था। इसके बावजूद उस दौरान मुझे यह समझ नहीं आया कि मैं उसकी बातों का कुछ जवाब दूं या उसे जाने से रोक कर उसका पता-ठिकाना पूछूं। थोड़ी देर तक स्तब्ध खड़े रहने के बाद मैं पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। उस व्यक्ति द्वारा कहा गया हर एक शब्द मेरे कानों में गूंज रहा था और अब तो तो उन शब्दों की ध्वनि पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा तीव्र और कर्कश हो गई थी। मैं अब के पहले कभी भी ऐसी किसी स्थिति से नहीं गुजरा था। मुझे यह एहसास बखूबी हो चुका था कि हर एक शब्द में एक विशेष शक्ति होती है और कई शब्द एक साथ मिल कर किसी को भी हिला कर रख सकते हैं।
मैं इसके पहले भी कई और मार्मिक कविताएं इसी शिद्दत के साथ लिख चुका हूं और उनके लिए मुझे तमाम तारीफें और बधाइयां भी मिली हैं मगर मुझे ऐसा एहसास पहले कभी नहीं हुआ था। ऐसी संतुष्टि और खुशी पहले कभी नहीं मिली थी। कविता लिखते समय मैंने यह एकदम नहीं सोचा था कि वह किसी के लिए इतनी असरदार होगी। यह अविस्मरणीय मुलाकात मुझे उस कविता की अहमियत और सार्थकता से रूबरू करवा रही थी।
मैं थोड़ा होश में आया तो दफ्तर के बाहर आकर बदहवास निगाहों से उस व्यक्ति को खोजने लगा। उसकी तलाश में आस- पास के क्षेत्र को पूरी तरह छान मारा मगर वह कहीं नहीं मिला। पेड़ों के नीचे, पान की दुकानों पर, चौराहे के प्रतीक्षालय और स्टेशन आदि तमाम जगहों में मैंने उसे खूब ढूंढ़ा, मगर वह व्यक्ति नहीं मिला। जाने क्यों मुझे यह लगने लगा था कि जैसे मैंने भी गैस त्रासदी की विभीषिका को झेला हो। मुझे उस व्यक्ति की वह बात एकदम सच लग रही थी कि शायद पिछले जन्म में मैं उसका बेटा था। लाख कोशिशों के बाद भी जब वह व्यक्ति नहीं मिला तो मुझे यह एहसास होने लगा कि जैसे वह कोई देवदूत या फरिश्ता था जो मुझे शब्द की शक्ति बताने आया था। शब्द की वह शक्ति जो अगर अपने रौद्र रूप में हो तो सिर्फ एक प्रहार से ही बड़े-बड़े शिलाखंडों को चकनाचूर कर सकती है और यदि अपने सरल और मृदु रूप में हो तो उन आंखों में भी आंसू आ जाएं जो मुद्दतों से सूखी पड़ी हों।
मुझे इस घटना ने पूरी तरह से झकझोर दिया था। शब्द के इस दिव्य रूप से अभीभूत मैं अपने दफ्तर की ओर लौटने लगा। पांव चलते जा रहे थे मगर मन उस दिलकश एहसास की तलाश में था जिस पर फिर एक ऐसी कविता का जन्म हो जाए जिससे मैं किसी के दर्द और आंसुओं को साझा कर सकूं।
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