ना नजर वो रही, ना नजारे रहे ।
ना बचपन के दिन वो हमारे रहे ॥
ना तो तितलियाँ हमें छेड़ती हैं अब,
ना हम फूलों जैसे प्यारे रहे ॥ ना नजर ................................
जब दिल-ओ-जुबा दोनों से सच्चा था मैं।
जब एक छोटा सा बच्चा था मैं॥
माँ लोरी सुना के सुलाती थी जब।
मेरे ख्वाब में परियां आती थी जब॥
बड़े हुए हम तो सब कुछ खो गया,
अब ना मेरे यार चाँद -तारे रहे॥ ना नजर...........................
ऐसी जवानी की हमको थी चाहत कहाँ।
ना हो एक पल की भी फुर्सत जहाँ॥
हमें दूर अपनों से आना पड़ा।
अपना आशियाँ भी भुलाना पड़ा॥
हंसी तो जमाने से आई नहीं,
अब आंसू भी उतने न खारे रहे॥ ना नजर...........
हम पैरो में अपने खड़े हो गए।
लोग कहने लगे ki बड़े हो गए॥
अपना अच्छा बुरा सब समझने लगे।
हर मुसीबत से खुद ही निबटने लगे॥
ना तो ऊँगली अब थमाती है माँ ,
ना हम ऊँगली के सहारे रहे॥ ना नजर..................